गणेशजी का वाहन मूषक एक ऐसा जीव है जो बहुत साधारण सा होने के बावजूद बुद्धि, ज्ञान में असाधारण है, जबकि लक्ष्मी जी का वाहन उल्लू है इसलिए लक्ष्मीजी को उलूक वाहिनी कहा गया है। उलूक रात्रि में ही देख सकता है इसलिए उस पर सवार होकर लक्ष्मी क्योंकि दिन में कहीं नहीं जा सकतीं, अतः रात्रि में ही भ्रमण करती हैं। ऐसे में ब्रह्मांड पुराण में महानिशीथ काल की लक्ष्मी पूजा को विशेष फलदायिनी कहा गया है।
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अनीतिपूर्वक उपार्जन और कुमार्ग पर व्यय किया जाए तो लक्ष्मीजी की प्रसन्नता का लाभ नहीं मिलता। धन का दुरुपयोग और पाप कर्मों पर व्यय से लक्ष्मी जी रूष्ट होकर चली जाती हैं। महाभारत के ग्यारहवें अध्याय में लक्ष्मीजी स्वयं रुक्मिणीजी से कहती हैं – मेरा निवास धर्मपरायण, निर्भीक, चतुर, क्षमाशील, कर्मठ, आत्मविश्वासी, अतिथि और वृद्धजनों की सेवा करने वाले गृहस्थियों के यहां होता है।